ठान लो तुम लक्ष्य कोई - गीत - अभिनव मिश्र 'अदम्य'

छोड़कर सारे बहाने, 
स्वप्न को दे दो उड़ाने। 
ठान लो तुम लक्ष्य कोई, पथ नहीं दुष्कर लगेगा। 

कर्म पर रहना अडिग बस, व्यर्थ कुछ मत सोचना तुम, 
कुछ विषमताएं पड़ेंगी, किन्तु पग मत रोकना तुम। 
खेल अपने करतबों से, तुम दिखा सकते जगत को, 
ज़िंदगी की जंग से होकर विजय ही लौटना तुम। 
इस हृदय में धैर्य धर लो, 
वज्र सी यह देह कर लो। 
कंटकों में पथ बनाकर, आपको चलना पड़ेगा, 
ठान लो तुम लक्ष्य कोई, पथ नहीं दुष्कर लगेगा। 

यदि हवा व्यवधान डाले, तो हवा का रुख़ बदल दो, 
लक्ष्य के संधान में तुम, शक्तियाँ अपनी प्रबल दो। 
कह रहा तुमसे समय यह, चाल अपनी तेज़ कर लो, 
जल्द ये दूरी मिटाकर, ज़िन्दगी को नव्य कल दो। 
अग्नि में जितना तपोगे, 
हाँ तभी कुंदन बनोगे। 
दीप बनकर जल गए तो, दूर अँधियारा भगेगा, 
ठान लो तुम लक्ष्य कोई, पथ नहीं दुष्कर लगेगा। 

इस गगन को नाप सकते, हो पखेरू आप बनकर, 
है निहित सामर्थ्य चाहों, तो कुचल सकते हो विषधर। 
पर बहुत अवरोध होंगे, लक्ष्य को गतिमान रखना, 
शांति से मत बैठ जाना, हार को स्वीकार कर घर। 
घेर ले चाहें व्यथाएँ, 
या घुमड़ जाएँ घटाएँ। 
भय जिसे किंचित न हो वह, कल सिकन्दर ही बनेगा, 
ठान लो तुम लक्ष्य कोई, पथ नहीं दुष्कर लगेगा। 

अभिनव मिश्र 'अदम्य' - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos