होली आई - कविता - गणेश भारद्वाज

होली आई होली आई,
रंगों की भर झोली लाई।
नाचे झूमे सारी सखियाँ,
कैसी यह हमजोली आई।

निखरी-निखरी ख़ूब धरा है,
सबके मन उल्लास भरा है।
सबको उलसित करती होली,
कण-कण में अनुराग भरा है।

मैं भी खेलूँ तू भी खेले,
रखकर सारे दूर झमेले।
मिलकर नापें नील गगन को,
खिंचे न फिर डोर अकेले।

शिकवे सारे आज भुला लें,
रूठों को अब कंठ लगा लें।
आओ सबको अपना कहकर,
सबके गाल गुलाल लगा दें।

हर जन झूमे नाचे गाएँ,
सारे मिलकर पर्व मनाएँ
मानव जन में भेद नहीं है,
ऐसे सब में भाव जगाएँ।

हैं रंग सही जीवन के दो,
अदला बदली करते हैं जो।
अपना-अपना देते पहरा
गमियाँ ख़ुशियाँ लाते हैं वो।

गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)

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