आई होली आई - कविता - ब्रजेश कुमार

राग है, रंग है, बज रहा मृदंग है,
उल्लास है, उमंग है, मच रहा हुड़दंग है।
अलमस्त मौसम ने है ली अँगड़ाई,
ख़ुशियों के रंग लिए आई होली आई। 

मस्ती है, धमाल है, त्योहार यह कमाल है,
धरती से अंबर तक उड़ता गुलाल है।
सृष्टि में है चारों ओर छाई तरुणाई,
ख़ुशियों के रंग लिए आई होली आई। 

आज कोई राँझा, तो कोई बना हीर है,
मुस्कराते गालों पर खिलता अबीर है।
प्रेयसी अपने प्रियतम से मिलने को ललचाई,
ख़ुशियों के रंग लिए आई होली आई। 

न किसी से झगड़ा, न किसी से द्वेष है, 
सब एक जैसे, न आज कोई विशेष है। 
फागुनी बयार स्नेह संदेशा ले के आई,
ख़ुशियों के रंग लिए आई होली आई। 

सबसे मिलने-मिलाने का अच्छा बहाना है,
भेदभाव भूल सबको गले से लगाना है।
मस्ती में घुल रहा भाँग और ठंडाई,
ख़ुशियों के रंग लिए आई होली आई।

ब्रजेश कुमार - पटना (बिहार)

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