दिल - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

दिल को
सम्भाल कर रखना
दिल से है सारे अरमान, 
दिल दुखने मत देना
क्योंकि
संबंधों का रखना ही होगा मान।
अगर दिल टूट जाए
तो सबंध होते हैं बेकार, 
दिल ही तो है जो अपनेपन को
रखता है सहेज कर
बारंबार।
जो टूटे दिल को जोड़ जाए
वही होता है महान, 
दिल के टुकड़े-टुकड़े होने पर
सारा जग बेगाना सा लगता है 
अपना नहीं कोई, 
नींद कहाँ आती है अँखियों में
जैसे कभी नहीं सोई।
दिल को अगर लग जाए घात
तो लगता है सूना-सूना सारा जहान, 
दिल को सम्भाल कर रखना
दिल से हैं सारे अरमान।
कटु वचन मत बोल मेरे भाई
क्योंकि दिल बहुत नाज़ुक होता है
इसे न देना संताप
भावुक मत होना
नहीं तो दिल पिघल-पिघल कर
अश्रु कणों की झड़ी लगात।
दिल को दुख देने वाली घटना
घटने पर जब प्रतिक्रिया
नहीं होने पर
आदमी मौन रहता है, 
इसका दिल बड़ा
कठोर है
दुनिया वालों का
यह आरोप रहता है।
दिल को कर मज़बूत
बना जग में अपनी शान, 
दिल को सभांल कर
रखना दिल से हैं सारे अरमान।
ऐ दिल वालो
किसी से दिल 
लगा कर विरह को मत देना मौक़ा, 
अगर दिल की बात अनसुनी की
तो मन पग-पग पर
खाएगा धोखा।
अगर दिल लगाना है तो
राधा-कृष्ण, हीर-राँझा, लैला-मजनू,
शीरीं-फ़रहाद जैसा
दिल लगाकर
अगर दिल बैठ जाए
ये है जमाने का
दस्तूर कैसा।
दिल की बात दिल में लग जाए
तब किसी को होता है भान, 
दिल को सभांल कर रखना
दिल से है सारे अरमान।

रमेश चन्द्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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