मैं नई दुनिया निर्माण करूँगा - कविता - शुभम शर्मा 'शंख्यधार'

नहीं चाहिए कोई विरासत,
ना धर्म और न कोई आफ़त।
चारों तरफ़ मचा कोलाहल,
मैं इसमें शांति बहाल करूँगा।

मैं नई दुनिया निर्माण करूँगा।

बच्चा बच्चा होता सच्चा,
जो पका नहीं वो होता कच्चा।
क्या है जीवन क्या उद्देश्य,
मैं इसकी भी पहचान करूँगा।

मैं नई दुनिया निर्माण करूँगा।

अकड़ रहे हैं यहाँ पे अपने,
द्वेष भरे हैं इनके सपने।
क्यों फूल बन गए हैं अंगारे,
मैं इनका मुग्द गान बनूँगा।

मैं नई दुनिया निर्माण करूँगा।

जो जीवन में है सफल आज,
फिर क्यों हो जाता विफल बाद।
समंदर क्यों हैं घुले हुए,
क्यों हैं मंदिर यहाँ घिरे हुए।

मैं क्यों जीवन बर्बाद करूँगा,
मैं नई दुनिया निर्माण करूँगा।

शुभम शर्मा 'शंख्यधार' - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)

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