भीख माँगते बच्चे - कविता - रविन्द्र कुमार वर्मा

कुछ भीख माँगते बच्चों से, मैं शर्मिंदा हो जाता हूँ,
कभी देता हूँ या नहीं देता, दोनों ही दफ़ा पछताता हूँ।

निर्जीव सा चेहरा होता है, सुखे हुए आँसू गालों पर,
आँखों में भय सा दिखता है, और मैल जमा है बालों पर।
मैं दशा कहूँ दुर्दशा कहूँ, कुछ बयाँ नहीं कर पाता हूँ,
कभी देता हूँ या नहीं देता, दोनों ही दफ़ा पछताता हूँ।

कुछ नंगे बदन कुछ नंगे पाँव, चौराहों पर मिल जाते हैं,
सहमे-सहमे से दिखते हैं, कुछ बोलने से कतराते हैं।
मेरे दिल में टीस सी उठती है, पर कुछ ना मैं कर पाता हूँ,
कभी देता हूँ या नहीं देता, दोनों ही दफ़ा पछताता हूँ।

कुछ करतब भी दिखलाते हैं, कुछ गोद में सोते रहते हैं,
उन्हें नशा पिलाया जाता है, कुछ लोग तो ये भी कहते हैं।
मेरी अंतरात्मा रोती है, उन्हें देख के मैं घबराता हूँ,
कभी देता हूँ या नहीं देता, दोनों ही दफ़ा पछताता हूँ।

ये भी सुनने में आया है, ये बच्चे चुराए जाते हैं,
फिर तोड़ के इनके हाथ पाँव, भिक्षुक ये बनाए जाते हैं।
हैं पुलिस मौन सरकार मौन, मैं मौन नहीं रह पाता हूँ,
कभी देता हूँ या नहीं देता, दोनों ही दफ़ा पछताता हूँ।

क्या पुलिस को इसका ज्ञान नहीं, क्या सरकारों को भान नहीं,
क्या मिट्टी के ये बच्चे हैं, क्या इन बच्चों में जान नहीं।
मैं देख देश का दुर्भाग्य, बस कुंठित सा हो जाता हूँ,
कभी देता हूँ या नहीं देता, दोनों ही दफ़ा पछताता हूँ।

मेरी विनती है सब लोगों से, हम आज से बस ये काम करें,
इन्हें खाने को कुछ भी दे दें, पर हाथों में ना दाम धरें।
हूँ कलमकार कुछ लिख कर ही, आज अपना धर्म निभाता हूँ,
कभी देता हूँ या नहीं देता, दोनों ही दफ़ा पछताता हूँ।

कुछ भीख माँगते बच्चों से मैं शर्मिंदा हो जाता हूँ,
कभी देता हूँ या नहीं देता, दोनों ही दफ़ा पछताता हूँ।

रविंद्र कुमार वर्मा - अशोक विहार (दिल्ली)

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