शाम को छः बजे - ग़ज़ल - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श'

अरकान: फ़ाइलुन फ़ेलुन फ़ाइलातुन फ़अल फ़ाइलुन फ़ेलुन फ़ाइलातुन फ़अल
तक़ती: 212 22 2122 12 212 22 2122 12

अंततः अब मिलना है उनसे मुझे, आज तक़रीबन शाम को छः बजे,
सोच मन विचलित दिल ये कैसे सहे, तीव्र गति धड़कन शाम को छः बजे।

दृग निहारे अविराम केवल घड़ी, इक घड़ी भी कटना है मुश्किल बड़ी,
मैं तो हूँ अति व्याकुल दरस के लिए, पुष्प सम आनन शाम को छः बजे।

हो न जाए अतिकाल अभिसार में, अननुमत है अतिकाल ये प्यार में,
शीघ्र आएगी प्रीत भी संग ले, ख़ूब वह बन-ठन शाम को छः बजे।

छम छमा छम छम ख़ूब करती हुई, वो हवाओं सी ख़ूब बहती हुई,
आई पैंजनियों की मधुर धुन लिए, छन छना छन छन शाम को छः बजे।

पल मनोहर मेरी प्रिये भी रुचित, कर गई मन मादक हिये भी मुदित,
चाह है बस निस-दिन मुझे चाहिए, चारु यह जीवन शाम को छः बजे।

अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श' - चन्दौली, सीतामढ़ी (बिहार)

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