पूनम की रैन - कविता - कर्मवीर सिरोवा

बांडी की तरह लगते 
ज़हरीले गोल गोल मटमैले
सुनहरे श्याम कैश,

आँखें ठहर जाएँ, 
खुली की खुली रह जाए,
ऐसे दिल पर आघात करते तेरे नैन।

लबों पर वर्णित
सुलगती, प्रेममयी बोलती नकारती आवाजें,

गाल हैं जैसे 
साँझ की लालिमा 
किसी धोरे के वक्ष पर गिरी हो,

मुख से बिखरता 
रंगोली सा आकर्षण 
मेरे ह्र्दयपटल पर 
लूट रहा मेरा चैन,

कर्मवीर को लग रही 
तू कृष्णपक्ष में पूनम की रैन।

कर्मवीर सिरोवा - झुंझुनू (राजस्थान)

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