राग के मधुर गीत सुनाए - गीत - कार्तिकेय शुक्ल

मुझको मुझसे दूर कर के
और तुम क्यों पास आए?
क्या इसी ख़ातिर तुमने
राग के मधुर गीत सुनाए?

सांध्य वंदन हो चुका था,
मन निर्जन हो चुका था,
रात्रि के इस घने पहर में
दबे पाँव तुम फिर क्यों आए?

राग के मधुर गीत सुनाए।

कल कि जब कुछ कहना,
रीत नया एक गढ़ना था,
तब कि तुम होश में होकर,
कहना था जो कह न पाए।

रश्मियाँ सब बुझ चुकी थीं,
बिजलियाँ सब कड़क चुकी थीं,
और तुम क्या ख़ास कहने
रात के इस पहर आए?

राग के मधुर गीत सुनाए।

बीत चुकी बातों पर फिर
इक नई फिर बात क्यों हो?
जा चुके हैं दूर बहुत जो
उन पे फिर सवालात क्यों हो?

क्या कि बस इस ख़ातिर तुमने
प्रेम के नए दिप जलाए,
कि मिट चुकी थीं यादें जो
क्यों फिर उन्हें ज़ुबाँ पर लाए?

राग के मधुर गीत सुनाए।

कार्तिकेय शुक्ल - गोपालगंज (बिहार)

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