जब मैं
आकाश बनना चाहता हूँ,
बन भी जाऊँ
तो तुम
मेघ बनकर
मेरे छाती पर
लोटपोट करना,
तुम्हें धरती पर
हरियाली दिखेगी,
सभी मौसम बदलने का
इन्तज़ार करेंगे।
धरती जब
तप्त लाल हो जाएगी,
सूरज के तेज़ ज्वला से
तुम्हें निहारेंगे।
धरा को तृप्त कर देना
बर्षा के बूंदों से।
जब अटक जाएगी
कुछ बूँदें आसमाँ में
और सूरज अस्त होने को होगा,
इन्द्रधनुष बनकर
दिखेगा पूर्व दिशा में।
मेरे ही छाती पर होंगे
सात रंग।
तब भी मानव धरा से
ख़ुश होंगे
इसे देखकर।
यह सब बस
धरती के लिए
क्योंकि धरती अधुरी है
आकाश के बीना।
असीम चक्रवर्ती - पूर्णिया (बिहार)