ये बदरा - कविता - अंकुर सिंह

बिछा धरा पर जल के मोती,
हमको घन ठंडक दे जाते।
कभी तेज़ बारिश अरु रिमझिम,
बरस जलद हरियाली लाते।।

दूर-दराज़ से पानी लाकर,
गरज तड़क बरसा जाते हैं। 
देख जलद को मन हरषाए,
पी संग भीगन मन तरसाए।। 

ये बदरा हैं पर उपकारी,
कृषकों के हैं अति हितकारी। 
कर रिमझिम बदरा तरसाए,
मन भीग पिया की याद दिलाए।। 

सुख मम जीवन में बरसा जा, 
भीनी सी ख़ुशबू सरसा जा। 
कर रिमझिम बदरा तरसाए, 
मुझे पिया की याद दिलाए।। 
 
अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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