माँ शारदे का वरदान हो तुम,
वीणा का मधुर झंकार हो।
कविता बताओ क्या हो तुम,
झरनों की मधुर आवाज़ हो।
नवचेतना सोते में भी भर दे,
ऐसी परम शक्ति भी हो तुम।
कविते बताओ क्या हो तुम,
साहित्य का सम्मान हो तुम।
अमरत्व हो साहित्य का तुम,
समाज का दर्पण भी हो तुम।
कोयल की मधुरस्वर समाहित,
सत्य की जयघोष भी हो तुम।
माँ शारदे का वरदान हो तुम,
वीणा का मधुर झंकार हो तुम।
डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा" - दिल्ली