छोटे-छोटे टकराव को,
जो करते दरकिनार।
वही बनता है एक सभ्य,
और आदर्श परिवार।।
रिश्ता भी पेड़ों की,
जड़ जैसा होता।
पेड़ों को धूप और,
पानी ज़रूरी होता।
परिवार को भी स्नेह,
और प्रेम ज़रूरी होता।।
दादा-दादी भी,
उस वृक्ष की तरह होते।
फल नहीं पर छाया तो देते।।
जो लोग परिवार में,
मिलकर नहीं रहते।
उम्र तो काट लेते,
लेकिन ज़िंदगी नहीं जीते।।
ख़ुशी परिवार ही
हिम्मत और हौसला।
परिवार देता जीने का फैसला।।
परिवार को एक रखो,
द्वेष न हो रिश्तों में।
परिवार टूट गया तो,
ज़िंदगी जिओगे क़िस्तों में।।
भारत की संस्कृति,
रही ऐसी समय।
भारत ने सिखाया विश्व को,
बसुधैव कुटुम्बकम।।
समय सिंह जौल - दिल्ली