बाक़ी है अभी - कविता - श्याम "राज"

माना मुश्किलों के दौर से
गुज़र रही है ज़िंदगी अभी,
पर हमने हार कहाँ मानी है अभी,
जीने का जज़्बा बाक़ी है अभी,
सूरज की तरह चमकना है अभी,
उम्मीदें बाक़ी साथ निभाने की है अभी,
पवन की तरह उड़ना है अभी,
नदियों की तरह कल-कल कर
बहना बाक़ी है अभी, 
कलियो की तरह खिलना हैं अभी,
फूलों की तरह महकना है अभी,
ज़िंदगी में उथल-पुथल हैं अभी,
इस जंग से जितना बाक़ी है अभी,
कुछ पल ठहर गई नज़दीकियाँ अभी, 
हर-एक मुस्कान को गले लगाकर
फ़ासले ये मिटाने हैं अभी,
महफ़िलो को फिर से सजाना है अभी,
माना हर तरफ़ डर का माहौल है अभी,
इससे आगे निकल कर
हँसना-मुस्कुराना बाक़ी है अभी।

श्याम "राज" - जयपुर (राजस्थान)

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