तेरी याद में - गीत - प्रशान्त "अरहत"

मेरा मन जैसे सागर का तल बन गया,
वो तेरी याद में ही मचलता रहा।
मैं खुले आसमाँ के तले देर तक,
अपनी छत पर अकेला टहलता रहा।

मैं तुम्हें छोड़कर जब से आया यहाँ,
ज़िंदगी गाँव की रात सी हो गई।
अब तो फैला चहुँ दिश अँधेरा यहाँ,
चाँद से इक मुलाक़ात सी हो गई।
रात का साथ देते हुए भी मग़र,
रूप अपना वो हर दिन बदलता रहा।
मैं खुले आसमाँ के तले देर तक,
अपनी छत पर अकेला टहलता रहा।

हर क़दम पर यहाँ मुझको पहरा मिला,
पीछे देखा तो वक़्त मुझको ठहरा मिला।
मिलने को, वो चाँद भी मिल गया,
पर छुपाकर के अपना वो चेहरा मिला।
लिखते-लिखते ही फिर सुबह हो गई,
रात भर तो मैं पन्ने पलटता रहा।
मैं खुले आसमाँ के तले देर तक,
अपनी छत पर अकेला टहलता रहा।

स्वप्न में जबसे तुमसे मैं मिलने लगा,
वक़्त की शाख़ पर फूल खिलने लगा।
उसकी ख़ुश्बू के जैसे तुम रही अनछुई,
रंग ख़ुश्बू में लेकिन था घुलने लगा।
साथ चलता रहा रोज़ मिलता रहा,
ख़ुद से मैं ख़ुद ही निकलता रहा।
मेरा मन जैसे सागर का तल बन गया,
वो तेरी याद में ही मचलता रहा।
मैं खुले आसमाँ के तले देर तक,
अपनी छत पर अकेला टहलता रहा।

प्रशान्त "अरहत" - शाहाबाद, हरदोई (उत्तर प्रदेश)

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