बेशक नहीं पसंद वो नफ़रत न हम रखेंगे।
बस प्यार की वफ़ा की चाहत न हम रखेंगे।।
ग़मगीन हैं फ़ज़ाएँ दहशत है खलबली है,
इस बेरहम हवा से क़ुरबत न हम रखेंगे।
होते रहे जो यूँ ही सब ख़ास दूर हमसे,
इक रोज़ ज़िन्दगी की हसरत न हम रखेंगे।
सुन ले मशाल वाले रह लेंगे तीरगी में,
तेरे उजालों से तो निस्बत न हम रखेंगे।
ऐ रहनुमा हमारे ली देख रहनुमाई,
तुझ पर कभी भरोसा हज़रत न हम रखेंगे।
लफ़्ज़ों में हम ढले हैं तुम देख लो किताबें,
अब और बोलने की ज़हमत न हम रखेंगे।
मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)