विरह मिलन - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

विरह वेदना सब सहे, मिलन प्रीत अभिलास।
मनहर कविता कामिनी, सावन मन आभास।।

विरह देख पूछी उमा, बोलो शिव परमेश।
ग़ज़ब विरह कवि लेखिनी, करो मिलन प्रीतेश।।

सिद्धि मिले कब मिलन में, बुझे विरह की आग।
मिला प्रीत मंगल युगल, रखो लाज अनुराग।।

शिव शंकर अस्मित वदन, सुने मुदित गिरिजेश।
आनंदक होता विरह, खिले प्रीति अरुणेश।।

तपे विरह की आग में, सुनहर हो नित प्रीत।
कुसुमित सुरभित हो मिलन, बन जीवन संगीत।।

कठिन परीक्षा प्रेम की, साहस धीरज काम।
विप्रलम्भ शृंगार बन, विरह मिलन अभिराम।।

सुनी बात मनयोग से, सत्य विरह का अर्थ।
त्याग शील गुण साधना, प्रीति मिलन धर्मार्थ।।

तन मन धन अर्पण स्वयं, कौतुक विरह न प्रीति।
प्रेम मृदुल कोमल विमल, चलता जीवन रीति।।

डॉ. राम कूमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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