इसलिए ख़ुद हमें जगाता है,
नींद की वो दवा पिलाता है।
नफ़रतें पालता रहा दिल में,
और क़समें वफ़ा की खाता है।
सुर्ख़ियाँ क्यूँ न हों गुलाबों में,
खाद अपना लहू पिलाता है।
शाख को ही कटा चुका होगा,
फूल तू क्या ख़ुशी मनाता है।
हाल अच्छा है बोल देते हैं,
पूछने जब हबीब आता है।
बात होती है जब चराग़ों की,
शर्त आँधी से वो लगाता है।
मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)