संदीप कुमार - नैनीताल (उत्तराखंड)
अधूरा इश्क़ - कविता - संदीप कुमार
शनिवार, अप्रैल 03, 2021
वो साथ में बिताए लम्हे, सभी को याद रहते हैं।
वो टूटे हुवे सारे ख़्वाब, दिल में आबाद रहते हैं।
इश्क़ में दिलबर की बाहों में, क़ैद हम थे कभी।
दिलबर की उन बाहों से, अब आज़ाद रहते हैं।
समझ ना आए कि वो सज़ा थी, या ये सज़ा है।
लेकिन अधूरे इश्क़ का भी, एक अलग मज़ा है।
वो लड़ना-झगड़ना और वो मीठी-मीठी तकरार।
कभी रूठकर ना बोलना, कभी मनाने को बेक़रार।
पता है हमको वो नहीं आएगी, अब कभी लौटकर।
लेकिन हर वक़्त रहेगा, उसके आने का इंतज़ार।
लगता है ख़ुदा की, यही ख़्वाहिश, यही रज़ा है।
लेकिन अधूरे इश्क़ का भी, एक अलग मज़ा है।
हर चेहरे में उसकी, मुस्कुराती सूरत नज़र आती है।
हर पल कानों में, उसकी आवाज सी टकराती है।
जब कभी छूकर गुज़रता है, हवा का झोंका कोई।
लगता है जैसे वो कहीं से, मुझे आकर छू जाती है।
उसके नाम से हर पल दिल में संगीत बजा है।
लेकिन अधूरे इश्क़ का भी, एक अलग मज़ा है।
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