नवरात्रि और कन्या - आलेख - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

नवरात्र शक्ति भक्ति प्रीति, नीति रीति न्याय, समरस संस्कृति की पावन और सशक्त भावनाओं का संगम चित्र बन कर य नवीय समाज के समक्ष उपस्थापित होता है। सत्य धर्म, अहिंसा, मित्रता, सहयोग, परमार्थ, संघर्ष और दुर्गम जीवन के अनंत भावों और महनीयता को समेटे नवरात्र का त्यौहार विजय का प्रतीक बन हर वर्ष मनाया जाता है। विविध प्राकृतिक मौसमीय ऋतु जनित प्रभावी भंगिमाओं को समेटे वर्ष में चार बार नवरात्रि का पावन पर्व  तात्कालीय परिवेश व वातावरण के अनुरूप अपने मानवीय कर्त्तव्यों का पालन करने की महती ऊर्जाशक्ति मनुष्य को प्राप्त हो जिससे समागत समस्त विघ्नों, कठिनाईयो, आपदाओं का सामना और समाधान कैसे हो, इसका चारुतम संदेश नवरात्रि के पावन त्यौहार के अवसर पर नवशक्ति के रूप में माँ दुर्गा के नवरूप का पूजन भक्ति और श्रद्धाभाव से किया जाता रहा है।

माँ दुर्गा की नवशक्ति क्रमशः 
जीवन में साधना, शान्ति, प्रेम, भयानक संताप और दुष्टों के संहार के अनुरूप रौद्रता, क्रोध, वीभत्स रूप, प्रेम, सौहार्द्र, परमार्थ, भक्ति, शक्ति, रिद्धि, सिद्धि, आनंद, हर्ष, विस्मय, स्वार्थ, दुराचार, सदाचार, पुरुषार्थ, धर्म, अर्थ, सामाजिक जीवन केद विविध आयामों को समेटे शुभ अशुभ, सुख दुख, राग अनुराग की सम विषम परिस्थितियों में कर्त्तव्याकर्त्तव्यों की प्रतीक के रूप में  मानी जाती हैं। नारी स्वतः ही शक्ति के विविध रूपों का प्रतीक है। सृष्टि के सर्जन, पालन, पोषण, विद्या धन वैभव, माँ सम्मान खुशी ग़म, सुख दुख, संवेदना, सहनशीलता, धीरता, साहस, आत्मबल, कर्मवीरत्व, दया क्षमा, करुणा, समता, ममता, प्रीति नीति, परम्परा, त्याग, सहयोग, परमार्थ, संघर्ष और संहारक। इन सभी विलक्षणताओं को समेटे नारी जाति सृष्टि और विधाता की अनुपम कीर्ति सृजन है। अतः नवरात्र की महासप्तमी, महा अष्टमी और महानवमी को कन्यापूजन और उनका षोडश शृंगार कर उन्हें कुमारी भोजन कराया जाता है। उन्हें माँ शक्ति के कन्या कुमारी रूप में आराधना की जाती है जिससे सकल क्लेशों से मुक्ति और मन की अभिलाषाओं की सफलता मिलती है। यश, वैभव, सुख, खुशियाँ, मुस्कुराहट सब प्राप्त होती है।

मुझे याद है कि बचपन में माँ कैसे छोटी छोटी कन्याओं को कुमारी भोजन के लिए आमंत्रित करती थी। मेरी बहन को भी दूसरों के घर से कुमारी पूजन और भोजन का आमंत्रण मिलता था। बहन के साथ मैं भी वटुक के रूप में वहाँ जाता था। माँ बहुत भक्ति भाव, श्रद्धा विश्वास से प्रेमपूर्वक सभी कन्याओं का पूजन, आराधन करती थी। उन्हें तिलक लगाती, शृंगार करती, उनकें पैरों को लाल आलता से रंगती थी। उन्हें भोजन कराती थीं और जाने से पूर्व उनके पाँवों को छूकर आशीर्वाद लेती थीं और उन्हें कुमारी भोजन दक्षिणा भी लाल कपड़े में बाँधकर देती थी।

वे छोटी छोटी बालकन्याएँ भी अपने को शक्ति देवीस्वरूप मानकर खुश रहो, पूतो फलो की समधुर सहज आशीर्वाद देती थी। आज भी सनातनी हिन्दू समाज में विविध पूजन अवसरों पर खासकर नवरात्र के अवसर पर तो कन्या को माँ शक्ति के रूप में पूजन, अर्चन और भोजन कराया जाता है। हमसब आज भी उसी धार्मिक गौरवमय परम्परा का निर्वहण करते आ रहे हैं।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos