कोरोना अब तो रहम कर - कविता - कर्मवीर सिरोवा

ग़रीबी में कोई कैसे रह लें दीवारों में दिन भर,
बेबसी में रोता रहा था निर्धन परिवार रात भर।

धनवानों ने तो लूटी तन्हाई खाया था पेट भर,
थूक लगा के गिने नोट रंग बिरंगे सोया रात भर।

अमीरी कहती रही देश बचाना हैं रहो घर पर,
अगरचे गलत न था विष फैला हैं हर डगर पर।

क़ुर्बतों के दिन गए, सन्नाटा पसरा हैं हर नगर,
बज़्म में साक़ी रोता रहा मोहब्बत के हाल पर।

कूचों में अब उदासी हैं गुर्फ़े से देखा हर पहर,
शैताँ आया हैं डसने, घर में रहो ख़ुद बच कर।

शबे मस्तियाँ बहुत हुई, शादी अब बस कर,
डॉक्टर भी न जा सका था माँ की अंत्येष्टि पर।

कोरोना तूने लूट लिया जीवन अब तो रहम कर,
'कर्मवीर' बहाली की करता हैं मिन्नतें रात भर।

कर्मवीर सिरोवा - झुंझुनू (राजस्थान)

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