चंचल - कविता - कवि सुदामा दुबे

चंचल चपला सी चंद्रमुखी   
फूलों सी लगे महकी महकी!
गुलमोहर सा सिंदूरी बदन 
हिये प्रीत अगन दहकी दहकी!!
चंचल चपला सी

निकसी शृंगार किए घर से 
अपने प्रीतम से मिलने को!
गुलनार सुघड़ मनमोहिनी सी
भावों से भरी गहकी गहकी!!
चंचल चपला सी

रसना से मौन लिए गौरी 
अधरन पर प्यास छुपाएँ हुए!
कजरारी सी बिखरे अलकें 
मतवारी लगे बहकी बहकी!!
चंचल चपला सी

अल्हड़ अलवेली बावरी सी 
यौवन में चूर हुई अपने!
अँखियन से इत उत को ताँके 
पंछी सी लगे चहकी चहकी!!
चंचल चपला सी

बिंदिया दमके घन बिजुरी सी
झूमे झुमके श्रुति सारंग से!
पग में पहने पायल प्यारी
झंकार करे ठहकी ठहकी!!
चंचल चपला सी

कवि सुदामा दुबे - सीहोर (मध्यप्रदेश)

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