अवधपति! आना होगा - रोला छंद - डॉ. अवधेश कुमार अवध

प्राची का पट खोल, बाल सूरज मुस्काया।
भ्रमर कली खग ओस बिंदु को अतिशय भाया।।
जागी प्रकृति तुरन्त, हुए गायब सब तारे।
पुनः हुए तैयार, विगत में जो थे हारे।।

उठे बालगण खाट छोड़ माँ - माँ - माँ रटने।
माँ दौड़ी सब काम छोड़ लख आँचल फटने।।
काँधे पर ले स्वप्न, सूर्य सँग जाना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

अब भी सीता देख, बहुत ललचाता रावण।
सूर्पणखा की राह, पुनः अपनाता रावण।।
खर-दूषण की मौत, समझ कब पाता रावण!
समझाने  पर  मूढ़, दर्प दिखलाता रावण।।

दशकंधर  दशकंध, पाप राही अनुगामी।
बुधि विवेक मतिहीन, वासना परवश कामी।।
धरती से लंकेश कुटुम्ब मिटाना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

कोरोना की चाह, सफाई रक्खो भाई।
बार-बार निज हाथ ठीक से करो धुलाई।।
मुँह पर बाँधो मास्क, रखो दो गज की दूरी।
नहीं लगाओ हाथ वस्तु जो नहीं ज़रूरी।।

सैनीटाइज बार बार हो दफ्तर, बाड़ी।
जानबूझ हर बार बनो मत अपढ़ अनाड़ी।।
कोरोना के हेतु नियम अपनाना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

राम रसायन स्वाद लिया जो कवि, ऋषि, योगी।
घर में भी  घरमुक्त  सदा वह रहा वियोगी।।
करता है हर कर्म किन्तु आसक्ति रहित वो।
लाभ हानि प्राप्तांक, राम अनुसार फलित हो।।

माँ शबरी सा आस, हृदय में हरदम रखता।
राम नाम बड़ स्वाद सदा चखता ही रहता।।
भक्तों को भवपार, अवश्य कराना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

डॉ. अवधेश कुमार अवध - गुवाहाटी (असम)

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