देख मुदित मन यामिनी - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

कोमल किसलय सरसिजा, महकें सलिल तडाग।
देख मुदित मन यामिनी, सजन मिलन अनुराग।।१।।

निर्मल निश्छल सलिल सम, प्रीति युगल रसधार।
चन्द्र वदन अस्मित अधर, यौवन रस उद्गार।।२।।

मधुमासी शीतल अनिल, लचके लता लवंग।
महक कुसुम गुलदावरी, खिले पुष्प बहुरंग।।३।।

लखि भोर अरुणिम प्रभा, हर्षित नभ सतरंग।
गन्धमाद पुलकित वदन, यौवन प्रीति तरंग।।४।।

उद्वेलित करता मधुप, यौवन चित्त हिलोर।
विहग वृन्द चहके गगन, मृदुल भाव चहुँओर।।५।।

नव यौवन मदरागिनी, लखि साजन ऋतुराज।
विहँसि मन्द मनहर मुदित, प्रीति नवल आगाज़।।६।।

चढ़ा रंग रस फागुनी, मन्द मन्द बरसात।
मिलन सजन सजनी हृदय, उमड़े मृदु जज़्बात।।७।।

लाल गुलाबी गाल मृदु, कोमल मुकुल रसाल।
चारु पयोधर गिरि शिखर, रस गागर मधुशाल।।८।।

महके तन मन अम्बुजा, देख सजन मुख चंद।
आलोड़ित रतिराग  मन, अस्मित रस मकरंद।।९।।

कोमल किसलय सरसिजा, महकें सलिल तडाग।
देख मुदित मन यामिनी, सजन मिलन अनुराग।।१०।।

निर्मल निश्छल सलिल सम ,प्रीति युगल रसधार।
चन्द्र वदन अस्मित अधर, यौवन रस उद्गार।।११।।

आश नवल उल्लास मन, नवांकुरित नवप्रीत।
कोमल दिल नव पल्लवित, कुसमित गंध सुमीत।।१२।।

लुब्ध प्रीति मधु माधवी, मंडराते अलिगुंज।
लखि लीला मुग्धा हिये, महके चित्त निकुंज।।१३।।

आगम फागुन मास लखि, रंजित मन अभिलास।
लोल लाल लेपित ललित, गुलाल भाल विलास।।१४।।

भव्य मनोहर चारुतम, फागुन रंग तरंग।  
निशिचन्द्र मन चन्द्रिका, आलिंगित प्रिय अंग।।१५।।

रंगीली चितचंचरी, मन माधव घनश्याम।
रोमांचित आशा मिलन, युगल प्रीति अभिराम।।१६।।

लखि निकुंज कविकाकिली, फागुन प्रिय शृङ्गार।
इठलाती कोमल प्रकृति, समरस सुख संसार।।१७।।

प्रीति नीति मधुशाल जग, हो गुलशन मधुरंग।
झूमें तन मदमत्त मन, कीर्ति प्रीति सत्संग।।१८।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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