पुस्तक हैं ज्ञान का आधार - कविता - प्रहलाद मंडल

एक शांत जगह में ख़ुद को लाओ,
मन से मन की बात सुनाओ।
लेकर हाथ में एक पुस्तक,
उनसे ही मन भर गप्पे लड़ाओ।

बहुत कुछ कहता है एक पुस्तक,
अबोध सा बनकर बस उसे सुनते जाओ।
चाँदनी रात  समझकर उन को 
चाँद सा बस तकते जाओ।

थकने न देगा वो दौड़ने भी ना देगा वो 
उनसे रखना सही व्यवहार। 
बैठ कर ही दिखा देगा पूरा संसार 
पुस्तक हैं ज्ञान का आधार। 

दुःख भी ना देगा वो सुख भी ना देगा वो,
देगा बस दुखो को काटने का उपाय।
अँधेरी गलियों में दिखाता प्रकाश 
पुस्तक हैं ज्ञान का आधार।

प्रहलाद मंडल - कसवा गोड्डा, गोड्डा (झारखंड)

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