रामलाल - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

रामलाल को
अस्तित्वहीन
न बना कर गृहस्थी की
गाड़ी को चलाना 
हर चाल में,
मुसीबतों की सीढ़ी
चढ़ जावे,
ऐसी प्रेरणा
भर दो
रामलाल में।
सादगी से
जीवन जीना,
नमक प्याज से रोटी खाना,
इसमें ही खुश रहकर
कर्तव्य पर अडिग रहना,
न पड़े कोई जंजाल में,
ऐसी प्रेरणा
भर दो रामलाल में।
कुटम्ब कबीला
और पत्नी से अटूट प्रेम
बढ़े और संग रहकर
जीवन की
खाई पाटना,
समाज में व्याप्त कुरीतियाँ
और अशिक्षा के अंधकार
की फैली कुरीति को हटाना,
एक दूजे के रंग में 
रंग जावे और न फँसे इस
दुनिया की चाल में,
ऐसी प्रेरणा भर दो
मेरे रामलाल में।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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