वीर बनो नव सोच में - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

मंज़िल पाने के लिए, होता जो गंभीर।
धीर वीर साहस सबल, उद्यम रच तकदीर।।१।।

धीर वीर अति साहसी, यायावर संघर्ष।
दीन हीन पीड़ित दलित, चाहत हो उत्कर्ष।।२।।

भारत माँ का लाडला, महावीर सम पार्थ।
मेधावी था अतिप्रखर, दानवीर परमार्थ।।३।।

उलझन फँस होती मनुज, धीर वीर पहचान।
संबल साहस प्रेमरस, मति विवेक विज्ञान।।४।।

रहे ध्येय नित राष्ट्र का, वसुधा ही परिवार।
धीर वीर सच सारथी, मानवता आधार।।५।।
    
करे सत्य निर्भय सबल, संकल्पित हो ध्येय।
सहचारी संघर्ष का, धीर वीर सच गेय।।६।। 

प्रगति वीर अति साहसी, उद्योगी जांबाज़।
सीमा प्रहरी बन वतन, शौर्यपूर्ण आगाज।।७।।

जीवन अनुपम है क्षणिक, कर लो कुछ पुरुषार्थ।
न्याय वीर गम्भीर बन, सत्पथ कर परमार्थ।।८।।

स्वच्छ रहे वातावरण, हो नीरोग शरीर।
निर्मल परहित चिन्तना, त्याग वीर रणधीर।।९।।

वीर बनो नव सोच में, श्रोता मौन महान। 
दृष्टि सदा दृढ लक्ष्य पथ, मिले अन्त सम्मान।।१०।। 

नशा भक्ति माँ भारती, गाओ भारत गान।
रमो ज्ञान मधुशाल में, शौर्य वीर यश मान।।११।।

कर्मवीर गंभीरता, वसुधा मुदित किसान।
नव शोधन उन्नति वतन, मधुशाला विज्ञान।।१२।।

संयम जीवन सारथी, जीवन रथ पुरुषार्थ।
मौन वीर नित संयमित, विजयी समझो सार्थ।।१३।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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