जीवन: एक यात्रा - लेख - सुधीर श्रीवास्तव

मानव जीवन जिंदगी के विभिन्न पड़ावों को पार करते हुए अपनी अंतिम यात्रा तक पहुंच कर खत्म होती है। परंतु यह विडंबना ही है कि इस यात्रा के किसी। भी पड़ाव पर आपको ठहरने की आजादी नहीं है। जीवन के हर पल में आपको अपनी सतत यात्रा जारी रखनी होती है। आपके हालात, परिस्थिति और समय कैसे भी हों, आपकी यात्रा जारी ही रहती है। आप खुश हैं, दुखी हैं, सुख में हैं या किसी परेशानी में है। आपकी अन्य गतिविधियां, क्रियाकलाप ठहर सकते हैं, मगर कभी ऐसा नहीं देखा गया कि जीवन यात्रा ग्रहों की तरह ही चलायमान है।

संभवत ऐसा इसलिए भी है कि यह हमें प्रेरित करने, चलते रहने का सूत्र दे रहा है और हम उसे नजरअंदाज करने की कोशिश में भ्रम का शिकार बने बैठे हैं।

यदि हमें अपनी जीवनयात्रा को सरल, सुगम और निर्विरोध बनाना है तो हमें बुराइयों से बचना होगा। ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, घृणा से बचकर चलते हुए सच्चाई, ईमानदारी, प्रेम, सद्भाव और सामंजस्य जैसे भाव अपने में समाहित करते हुए आगे बढ़ना होगा। तभी हमारी जीवन की यात्रा सुगम, सहज और सहज भाव से अपनी मंजिल तक निर्विघ्न पूर्ण हो सकेगी।

अन्यथा जीवन भर हिचकोलों के बीच डरी डरी आशंकाओं भरी ही होगी।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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