तुम बिन - कविता - श्रवण निर्वाण

तुम बिन
मेरी कैसी कहानी
कैसी ये मेरी ज़िन्दगानी
हवा भी नहीं लगती सुहानी
तुम बिन...


चाँदनी रात ना सुहाये
चाहे कोयल गीत सुनाये
गीत ना कोई अब अधरों पर आये
तुम बिन...


सब हो गए पराये
चाहे कोई आये चाहे जाये
कोई ना अब मेरे मन को भाये
तुम बिन...


मेरा तन तो रूखा सा
जीवन अब तो झूठा सा
मौसम भी अब तो सूखा सा
तुम बिन...


ना धूप अच्छी
ना कोई छाँव अच्छी
ना फूलों की कोई महक अच्छी
तुम बिन...


घटा बेरुखी हो गई
बुन्दे बारिश की खो गई
विदाई बसन्त की भी हो गई
तुम बिन...


आज हूँ मैं बहुत बेगाना
आना आना फिर आ जाना
मेरी ज़िंदगी को फिर तू सजाना
तुम बिन...


श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)


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