माहौल का असर - कहानी - शेखर कुमार रंजन

जब मैने काया से पहली बार मिला था तब उसे समझ पाना मेरे लिए बिलकुल ही मुश्किल था उसका कोई भी बात मेरे लिए एक पहेली जैसी थी ऐसा लगता था कि 23-24 वर्ष की आयु में ही वह बहुत कुछ झेल चुका है अपनी जीवन में लग रहा था कि वो अपने अंदर ना जाने कितने ही रहस्य छुपा रखा हैं। वह क्या सोचता था पता नहीं। ऐसा लग रहा था कि उसे बहुत ही अनुभव हैं इस दुनिया का, पर मैने पहली बार एकमात्र काया को ही ऐसा देखा जो हर उम्र के लोगों के तकलीफ़ व खुशी को महसूस करता था। मानो जैसे कि वह इससे पहले इस दुनिया में आकर एक पूरी जीवन व्यतीत करने के बाद बूढ़े होकर मर गया हो और उसी याद के कारण वह हर उम्र के लोगों के होने वाली तकलीफ़ों को महसूस कर उसे कम करने की कोशिश करता हो।

मैने काया के बारे में जानने की इच्छा उससे जाहिर की और उसे अपने बारे में बताने के लिए कहा। अब मैं भी काया के बारे में जानने को काफ़ी व्याकुल था।
काया एक गरीब परिवार में जन्मा था। जो जन्म के आठ महीने बाद ही चलना प्रारंभ कर दिया था उसकी यादाश्त का क्या कहना वो माँ की स्तन से दूध पीने के क्रम में दाँत चुभने पर माँ से लगी पिटाई तक याद रख रखा था। काया बहुत ही तीक्ष्ण बुद्धि वाला बच्चा था किन्तु काया के शरीर देखने से ऐसा लगता था जैसे कि वे कुपोषण का शिकार हो नाटा सा दुबला पतला तब उसे कंकाल कहना भी ग़लत नहीं होता ऐसा बनावट था काया के शरीर का किन्तु ऐसा बनावट काया के शरीर का 12-13 वर्षों तक ही रहा बाद में काया एक खाते पीते घर के बच्चों की तरह मांस से भरा एक वजनदार इंसान बन चुका था किन्तु इस बीच क्या क्या हुआ था वो मुझमें जानने की उत्सुकता थी।

काया बचपन से ही बहुत बुद्धिमान था वह कोई भी चीज पढ़ता तो उसे याद हो जाता था साथ ही वह कोई भी चीज समझ कर पढ़ना ही पसंद करता जो उसे समझ नहीं आता उसे तबतक नहीं छोड़ता जब तक की उसे बढ़िया से समझ न आ जाएँ। वह जिससे भी बात करता उससे केवल प्रश्न ही करता रहता और जब तक उसके जबाब से संतुष्ट न होता मानो वह चैन से नहीं बैठता। उसका प्रश्न केवल किताबों से ही होता यह कहना सही नहीं होगा। वह किसी भी तरह का प्रश्न कर देता जैसे आकाश में कौआ कैसे उड़ता है या वर्षा कैसे होती है या फिर चलता हुआ बादल कहाँ जाकर रुकता है या समुन्द्र कितना बड़ा है, आसमान कहाँ पर जाकर खत्म हो जायेगी आदि। उसके प्रश्न करने के आदत से कितने लोग तो परेशान हो जाया करते थे और इसे आते देखकर न जाने कितने लोग तो छुप भी जाया करते थे।

काया का मन बचपन से ही स्वच्छ था उसकी दुनिया बहुत ही छोटी सी थी जिसका हिस्सा उसका परिवार, गुरू व कुछ दोस्त  थे। काया को पढ़ना बहुत ही पसंद था साथ ही उसे अपने परिवार वालों को खुश देखकर बहुत ही आनंद आत था। काया के परिवार वाले पढ़े लिखे थे किन्तु निर्धन थे यहीं कारण था कि वह जिंदगी के उतार चढ़ाव से पूरी तरह वाकिफ़ था। वह अपनी जीवन में बहुत चीजों के साथ समझौता कर रखा था, काया बहुत छोटी सी उम्र से ही तनाव में जी रहा था तनाव का कारण छोटी छोटी बातें हुआ करता था जिसका निदान शायद काया कर भी नहीं सकता था आखिर ये तनाव क्या होती थी सीधे शब्दों में कहा जाएँ तो माता पिता को कोई बात को लेकर चिंता करते देखने से उसे भी यह चिंता हो जाता था भले ही माता पिता इस बात से अंजान हो कि उसके साथ काया को भी तनाव होता है भला माता पिता को पता भी कैसे चलता आखिर उनके नज़र में तो काया बच्चा ही था न।

काया को हर वो बात से तकलीफ़ होती थी जिससे कि उनके माता पिता परेशान होते थे। उसे ये जिंदगी तो तब रास नहीं आती थी जब उनके माता पिता तनाव में आकर एकदूसरे से लड़ पड़ते थे। शायद काया की तरह ही कोई भी बच्चा यह नहीं चाहेगा कि उनके माता पिता एकदूसरे से लड़े इन बातों से बच्चों पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है और ये बातें उन्हें उनके विकास में अवरोध भी उतपन्न कर देते है। काया एक संवेदनशील बच्चा था जिस पर हर घटनाओं का प्रभाव पड़ता था वो बचपन से ही एक खूबसूरत जीवन जीना चाहता था वह एक ऐसा काल्पनिक दुनिया बना रखा था जिसमें उसके परिवार खुशी खुशी जीवन व्यतीत करते हो साथ ही थोड़ा बहुत समय अपने दोस्तों के साथ बिताए व वह अपने शिक्षकों का अच्छा शिष्य कहलाए यहीं उसका एक छोटा सा काल्पनिक दुनिया था जिसे वह वास्तविक रूप से जीना चाहता था किन्तु निर्धनता के कारण घर में संसाधन के अभाव में कलह होने से उसे काफी वेदना होती थी, पिता को किसी बात पर माँ को डाँटते या फिर पीटते देखकर वह झूठ फुट कर सोने का एक्टिंग कर लेता व अंदर ही अंदर घुटता रहता व जब उसे बर्दाश्त नहीं होता तो झूठ फुट के आँख मलते हुए मलमूत्र के लिए चला जाता और अकेले में जाकर खूब रोता और फिर आँख धोकर वह टहलने लगता और उसे फिर से उस कमरे में सोने जाने का ज़रा सा भी मन नहीं करता किन्तु पिता जी के पिटाई के डर से वह आकर फिर सो जाता पर नींद कैसे आता वैसा माहौल में ये कल्पना से भी परे है किंतु किसी तरह वह कोशिश करता रहता की आखिर नींद आ जाएं व सुबह होते होते उसे नींद आ ही जाती थी। किसी भी बच्चें को सोना अच्छा लगता है काया भी उन्हीं बच्चों में से था किंतु काया सोये भी तो किस मौसम में? बरसात में घर के छत चुने से सारा पानी बिछावन पर आने के कारण कोने में बैठकर सुबह करता तो सर्दी में कम्बल के अभाव में ठिठुर कर सुबह करता, गर्मी का क्या कहना मानो तो जैसे मच्छर को उसका सारा खून पीने का टेंडर ही मिल गया हो आखिर मच्छरदानी भी तो नहीं था। क्या करता बेचारा एक ही घर में जानवरों की तरह सोने से अच्छा किसी और के छत पर सोना जो उसे पसंद था और औकाद का पता तो तब चलता जब छत वाले कभी कभी घर में ताला मारकर स्वयं सो जाते बेचारा तब तो गोरथारी में सोकर किसी तरह रात गुजारता था यही कारण था कि काया को दिन पसंद था और सारा दिन खेलने कूदने व पढ़ने में गुजार देता था।

काया के मन में किसी तरह का कोई छल कपट नहीं था वो एक हँसता खेलता बच्चा था तकलीफ़ में भी खुशी ढूंढ लेता था थोड़ा मजाकिया लहजे से भी था किन्तु दिल से किसी को ठेस पहुंचाने के बारे में वह सपने में भी नहीं सोच सकता था। उसमें एक भी बुरी आदत नहीं थी रोज सुबह उठना, पढ़ना लिखना व बड़ो का आदर करना आदि जैसी अच्छे गुण उसमें विधमान था। किन्तु गरीबी के कारण समाज के कुछ लोग उसे कोई मूल्य नहीं देते थे कारण यह भी था कि वह काफी तेज चालाक बच्चा था और गरीब का बच्चा तेज हो यह किसी को पसंद होता क्या? यहीं कारण था कि सीधा साधा स्वच्छ हृदय व फुर्तीला काया को कोई नहीं पसंद करता था सिवाय उनके परिवार व गुरु के।

अजीब है न कि काया उस समाज से अपने खुद की तारीफ़ करने का आश लगा बैठा था जो खुद बुराइयों के दलदल में फंसा हुआ था और इन सब बातों से काया अनभिज्ञ था उसे दुनियादारी की उतनी समझ नहीं थी, कुछ लोगों के आलोचना करने पर वह अपने सभी अच्छे गुण में बदलाव कर दिया था। बुरे लोगों की झूठी तारीफ़ सुनकर उसके जैसे कार्य ही करने लगे अब समाज उसे बहुत तबज्जू देती हैं। आज काया हर वो बुरा कार्य करने लगा है जिससे उसे घिन आती थी और ऐसा वो कभी करेगा सोचा भी नहीं था पर आलोचकों के जाल में वह पूर्णरूपेण फँस चुका है वर्तमान में काया के लिए शराब पीना, जुआ खेलना, बिना मतलब में समय बर्बाद करना, बात बात पर गुस्सा आना आदि बुरी आदतों का शिकार हो चुका है और दुःख की बात है कि अब काया को बुरा कहने वाला कोई समाज नहीं है अब आलोचक नहीं बल्कि उसे प्रोत्साहित करने वाले लोग हैं जो उसके साथ बैठकर पीना पसंद करता है व आज भी काया अकेले में बैठकर यह सोचता है कि मैं क्या था और क्या हो गया आखिर काया ने तो ऐसी ज़िंदगी की कभी कल्पना ही नहीं कि थी। काया आज रोते हुए अपनी बातों का अंत किया और बोला कि मुझे पहले जैसा ही जीना है मुझे अपने पुराने सपनों को पूरा करना है, काया की बातें सुनकर आज मेरी आँखें भी नम हो गई और मैं इस कहानी के माध्यम से यह उन सभी बच्चों से कहना चाहता हूँ जिसका हाल काया जैसा है, कि हमें आलोचकों से सावधान रहना चाहिए यदि आपके अच्छे गुण का कोई तारीफ़ न भी करे तो भी हमें अपनी अच्छाईयों को नहीं छोड़नी चाहिए।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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