सरस्वती वंदना - कविता - अंकुर सिंह

हे विधादायिनी! हे हंसवाहिनी!
करो अपनी कृपा अपरम्पार।
हे ज्ञानदायिनी! हे वीणावादिनी!
बुद्धि दे!, करो भवसागर से पार।।


हे कमलवसिनी!, हे ब्रह्मापुत्री!
तम हर, ज्योति भर दे।
हे वसुधा!, हे विधारूपा!
वीणा बजा, ज्ञान प्रबल कर दे।।


हे वाग्देवी!, हे शारदे!
हम सब है, तेरे साधक।
हे भारती !, हे भुवनेश्वरी!
दूर करो हमारे सब बाधक।।


हे कुमुदी!, हे चंद्रकाति!
हम बुध्दि ज्ञान तुझसे पाए।
हे जगती!, हे बुद्धिदात्री!
हमारा जीवन तुझमें रम जाए।।


हे सरस्वती !, हे वरदायिनी!,
तेरे हाथों में वीणा खूब बाजे।
हे श्वेतानन!, हे पद्यलोचना!
तेरी भक्ति से मेरा जीवन साजे।।


हे ब्रह्मजाया!, हे सुवासिनी!
कर मे तेरे ग्रंथ विराजत।
हे विद्या देवी!, हे ज्ञान रूपी!
ज्ञान दे करो हमारी हिफाजत।।


अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos