सांवली सूरत - कविता - तेज देवांगन

ये जग मूझपे हसती है,
अनेक समीक्षाएं रचती है।
मैं मठमैली सांवली सी,
हरकते मेरी बावली सी।
किसी ने नहीं देखा मेरा अंतर्मन,
सब देखते मेरे तन बदन।
मुझमें है कितनी चाह की आशा,
किसी की चाहत और पनाह कि आशा।
आश है मुझे, किसी चकोर की,
उसके हर व्यक्तित्व और छोर की,
जो चन्द्रमा को शीतल करे,
बांधे मुझे उस डोर की।
मै काली अंधेरी रात,
सपनो से बंधी खायलात।
कोई जुगनू ही चमके,
मुझे ज़रूरत उस भोर की।
मै मठमैली सावंली सी,
हरकते मेरी बावली सी।।।

तेज देवांगन - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

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