समय की सौगात कहूँ
या विधाता की करामात।
तन बोझ लगता है
कायर मन डरता है
कोई शान्ति नहीं
कहीं भ्रांति नही
समय की सौगात कहूँ
या विधाता की करामात।
जीना अब तो सजा है
अब तो उसकी रज़ा है
ज़रा भी साथ नहीं
कन्धे पर हाथ नहीं
समय की सौगात कहूँ
या विधाता की करामात।
नहीं कोई मंजिल जिसे पाना है
ना ही अब फिर यहाँ आना है
कोई यहाँ पास नहीं
किसी के आने की आस नहीं
समय की सौगात कहूँ
या विधाता की करामात।
दिल के अरमान टूट गए
साथी सारे छूट गए
अब कोई चाँदनी रात नहीं
गिला शिकवा की कोई बात नहीं
समय की सौगात कहूँ
या विधाता की करामात।
श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)