मंज़र - कविता - तेज देवांगन

रुकसत भरी निगाहों को, मंजर मिले,
दर किनारे बह रहा हूँ, मुझे समंदर मिले।
मिले हर लफ्ज़ को अल्फ़ाज़ तुम्हारा,
मिले हर गीत को साज तुम्हारा।
धवल चाँदनी में मिले चाँद जिसको,
सपना उसका क्या भला,
सौगात में मिले आसमाँ उसको।
भौरे फूलो से क्यू न भला, पराग चुराए,
हक जो मिला कायाना उसको।
हमे क्या मिले, और क्या भला,
मिले बस हर स्वप्न खवान मुझको।
हकीकत ए तेज बयां करता हूँ,
मिले हर दस्तक, नसीब में लिखा जिसको।
पलटती तो एक दिन, हर तस्वीरे,
मिलती कागजों से इम्तहान उनको।
दीवारों से भी तब्सूम ना सजाना,
मिलती चोट हथौड़ों की, हर निहां उनको।

तेज देवांगन - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

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