कवि भाव कविता में,
नित भावुक कर देता है।
हर अभाव-भाव उर नित,
प्रभाव -भाव भर देता है।।
कवि कलम-सरासन, शब्द-बान,
जब, तरकस भर लेता है।
सद्भाव सबल शब्द वार कर,
तन-मन छिद्रित कर देता है।।
दुर्भाव-रुधिर तन अंग बहा,
बाहर कर देता है।
मिथ्या की मात व विजय सत्य,
वह तय कर देता है।।
चेहरे को आइने के, सम्मुख
सीधे धर देता है।
दिखावटों औ हकीकतों में,
अन्तर कर देता है।।
बुरे दिलों में अच्छाई का ,
डर भर देता है।।
ज्ञान-ज्योति उर जला,
अज्ञान-तम सब हर लेता है।।
नीरस में भी कवि भाव,
नित रस भर देता है।
भिन्न-भिन्न, बिच्छिन्न, मिला
एकत्र कर देता है।।
पहुंचें नैंन न रवि के जंह,
वंह भ्रमण कर लेता है।
जड़ को भी कुछ पल को,
कवि चेतन कर देता है।।
क्रोध-अनल को धैर्य-वारि,
शीतल कर देता है।
पय का पय, पानी का पानी,
कवि कर देता है।।
पिघला कर पाषाण हृदय,
सुमन-कोमल कर देता है।
बैमनष्य के बीज बिनष्ट,
प्रेम मय क्षिति कर देता है।।
कवि भाव कविता में,
नित भावुक कर देता है।
हर अभाव-भाव उर नित,
प्रभाव-भाव भर देता है।।
राम प्रसाद आर्य - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)