भीमाकोरे गाँव - कविता - नीरज सिंह कर्दम

उन्होंने तलवार से इतिहास लिख दिया,
इतिहास के पन्नों मे अपना नाम अमर दिया,
एक एक ने छप्पन-छप्पन को मारा था,
छप्पन इंच के सीने का असली मतलब समझाया था,
पैशबा मनुवाद की छाती पर ऐसा वार किया था,
जब पाँच सौ ने अट्ठाईस हजार को ढेर किया था।

गुलामी की जंजीरे मे जकड़े हुए थे जो,
इसलिए तलवार उठाने पर मजबूर हुए थे वो,
शोषण हो रहा था हजारो बर्षो से,
उसके विरूद्ध लड़े थे वो, सम्मान के लिए लड़े थे वो।

महारो की तलवारो ने ऐसी गाथा लिखी थी,
सम्मान के लिए जब तलवारे उठी थी,
शोषण सहन करने वालो मे से नही है हम,
ये उनको अच्छी तरह से समझाया था,
पैशवा मनुवादियों की सत्ता चलती थी जहाँ,
वही पर उनकी लाशों का ढेर लगाया था।

पीछे हटते चले गए वो मनुवादी कदम,
जब एक योद्धा के हिस्से मे छप्पन का सर आया था,
एक हाथ मे तलवार दूसरे हाथ मे ढाल थी,
यहाँ अपने सम्मान की लड़ाई थी।

भीमाकोरे गाँव की गाथा जो लिखी थी,
ऐसा उन्होंने इतिहास लिखा था,
उन पाँच सौ वीरों को नमन करते हैै,
उनकी वीरता को सलाम करते है,
हम मूलनिवासी उन वीरो के वंशज है,
इस बात पर हम सब गर्व करते है।

नीरज सिंह कर्दम - असावर, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)

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