ताज! तमंचों का है - कविता - वरुण "विमला"

पहचान न पाओगे चेहरा,
किरदार!
उसका रंगमंचों का है।  

ज्ञान धरा का धरा रह जाता है,
तरक्क़ी!
चमचों का है। 

बातें चुभती, कड़वी लगती हैं। 
ज़बाँ!
तंजों का है। 

समझ ही ना पाओगे वार इनके,
कलह!
सियासी रंजों का है। 

खुद को महफ़ूज़ समझते हो?
हाथ!
खूनी पंजो का है। 

चहारदीवारे ऊँची कर लो,
ताज!
तमंचों का है।

वरुण "विमला" - बस्ती (उत्तर प्रदेश)

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