आग - कविता - अवनीत कौर

शब्दों की दहकी आग 
किया स्वाभिमान को राख।
वो आग थी
गन्दी सोच की, गंदे सड़े विचारो की।
शब्द थे वो निशब्द से
आग के गोले से दहकते,
वो शब्द हवस में बहकते।
वो आग से शब्द रूला गए,
अंतर्मन को जला से गए।।

आग के शोलो में लिपटे शब्द
बढ़ा गए दिल का दर्द,
वो आग कर गई मुझे सर्द।
जल कर उस आग में 
पड़ गई काली जर्द,
क्यों चोट देते ढोंगी मर्द।।

आग जो लगी है बुझ तो जाएगी,
शब्दों की ज्वालामुखी 
मन में फटती जाएगी।
शब्दों की आग, छेड़ा रूद्र राग।।

अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी" - गुवाहाटी (असम)

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