अरमान - कविता - श्रवण निर्वाण

जीवन के सब रंग है, तुम से
जीने के ढंग भी सब तुम से।
मेरे जीवन की सब सजावट
यह हँसी ख़ुशी की मिलावट।


तुम हो तो नूतन मेरे विचार
मन देता शब्दों को आकार।
प्रफुल्लित करती आहट तेरी
चलती है, साँसों की डोर मेरी।


एहसास तुम्हारा बना सहारा
मन मस्तिष्क में होता नज़ारा।
पास नहीं है, गम की परछाई
नहीं होती किसी से रुसवाई।


आत्मिक बँधन है, अब तुमसे
ना गिला ना शिकायत तुमसे।
रखूँगा महफ़ूज सब यादें अब
कौन जाने बिछुड़ जाए कब।


कुछ यादों में सिमटी जिन्दगी
उन्हीं के सहारे कटेगी जिन्दगी।
मिलकर तुम से अरमान जागे
इससे ही मैं जिन्दा रहूँगा आगे।


श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)


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