सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
गीता का मूल स्वरूप - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
गुरुवार, दिसंबर 31, 2020
धर्म का मूल स्वरूप ही गीता के ज्ञान का मूल स्वरूप है।
गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को यह बताते हैं कि मूल प्रकृति ही संसार की समस्त वस्तुओं को उत्पन्न करने वाली है और मैं ही ब्रह्म आत्मा रूप में चेतन रूपी बीज को स्थापित करता हूँ। इस जड़ चेतन के सहयोग से सभी चर अचर प्राणियों की उत्पत्ति होती है। साथ ही समस्त योनियों में जो भी शरीर धारी प्राणी उत्पन्न होते हैं उन सभी को धारण करने वाली आत्मा रूपी बीज को स्थापित करने वाला पिता मैं हूँ।
गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं इस सृष्टि की रचना मूल रूप से तीन गुणों से हुई है यह 3 गुण सत्व, रजस और तमस है। हालांकि आधुनिक विज्ञान आज भी अनजान है, परंतु धार्मिक मान्यता है कि यही तीनों गुण सजीव, निर्जीव, स्थूल और सूक्ष्म वस्तुओं में विद्यमान रहते हैं। गीता के अनुसार हर इंसान में यह तीनों गुण मौजूद रहते हैं।
तमो गुण में किए गए कर्म का फल अज्ञान कहा गया है और तमोगुण की वृद्धि होने पर मृत्यु को प्राप्त करने वाला मनुष्य पशु पक्षी आदि नीच योनियों में जन्म लेकर नर्क को भोगता है।
सात्विक, राजसिक और तामसिक ये तीनों गुण भौतिक प्रकृति से उत्पन्न होते हैं। प्रकृति से उत्पन्न गुणों के कारण ही अविनाशी आत्मा शरीर से बंध जाती हैं साथ ही इस जीवात्मा को अच्छी बुरी योनियों में जन्म लेने का कारण बनता है। इन तीनों गुणों में सतोगुण अन्य गुणों की तुलना में अधिक शुद्ध होने के कारण पाप कर्मों से जीव को मुक्त करके आत्मा को प्रकाशित करने वाला होता है। जिससे मनुष्य सुख और ज्ञान के अहंकार में बन्ध जाता है, वही सात्विक गुणों से वास्तविक ज्ञान उत्पन्न होता है भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि सत्व गुण मनुष्य को सुख से बांध देता है फिर जब सतोगुणी होने पर कोई मनुष्य मृत्यु को प्राप्त करता है तब वह उत्तम कार्य करने वाला स्वर्ग लोक को जाता है।
साथ ही रजोगुण को कामना और आसक्ति से उत्पन्न हुआ जान करके जीवात्मा कर्मों के फल की आसक्ति में बंध जाता है। रजोगुण के उत्पन्न होने के कारण फल की इच्छा से ही कार्यों को करने की प्रवृत्ति और मन की चंचलता के कारण विषय भोगों को भोगने की इच्छा बढ़ने लगती है।रजोगुण से निश्चित ही लोभ उत्पन्न होता है तथा इसकी वृद्धि होने से प्राप्त मृत्यु वाला व्यक्ति पृथ्वीलोक में रह जाता है। रजोगुण में किए गए कार्यों का परिणाम दुख होता है। कुल मिलाकर इतना कह सकते हैं की गीता के ज्ञान का अर्थात धर्म का मूल स्वरूप यही है कि मनुष्य स्वयं को पहचाने एवं अपने अंदर विद्यमान तीनों गुणों में सर्वश्रेष्ठ सात्विक गुणों को विकसित करें, यही मोक्ष का मार्ग है यही स्वर्ग का मार्ग है।
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