आर एस आघात - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
मुझे कुछ कहने दो - कविता - आर एस आघात
बुधवार, नवंबर 25, 2020
सदियों का सताया चेहरा हूँ,
नारी, रमणी, वनिता और अवला हूँ,
देख मेरे अंगों का स्वरूप सदा क्यूँ बहक जाते हो,
क़भी मुझे जी भरकर जी लेने दो।
मुझे कुछ कहने दो....
आत्मनिर्भर बनने का मौका तो मिले,
मेरी जुबान को इक आवाज़ तो मिले,
घर, परिवार, समाज की इज्ज़त का बास्ता देकर,
मेरी हिम्मत के पँख बिखरने न दो।
मुझे कुछ कहने दो....
मुझे आज कुछ कहने दो,
जलते अंगारों पर चलने दो,
कौन कहता है ज़ुल्मी बच जाएगा न्यायालयों से,
मुझे वीरांगना फूलन जैसी बनने दो।
मुझे कुछ कहने दो....
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