आर्यपुत्र आर्यन सिंह यादव - औरैया (उत्तर प्रदेश)
सोचना तो आसान था - कविता - आर्यपुत्र आर्यन सिंह यादव
शनिवार, जून 19, 2021
ना सोचा था कभी हमने क्या क़िस्मत का नज़ारा है,
बदलता वक़्त भी पल में ये प्रकृति का पिटारा है।
सरल है क्या कठिन जग में? समझ ना लोग पाते हैं,
ना कुछ यहाँ पर हमारा है ना कुछ यहाँ पर तुम्हारा है।।
जो देखा दृश्य दुनिया में चकित हृदय हमारा था,
समझ ना कुछ सका तब मैं खड़ा बेबस बेचारा था।
क्या करें ना करें? जीवन की परिभाषा ना जानता,
करूँगा बस वही कर्तव्य जो निश्चय हमारा है।।
ठान कर दिल में वो इच्छा थी करने कि मैंने ठानी,
लोग थे हँस रहे मुझ पर किसी की बात ना मानी।
था मैं मानता दुनिया में सारा ही दिखावा है,
मुझे तो लक्ष्य बस मेरा हुआ प्राणों से प्यारा है।।
था दृढ़ निश्चय मेरे मन में लेकिन मुझको ना ज्ञान था,
रास्तों की कठिनता का मुझे बिल्कुल ना भान था।
नहीं परिणाम की चिंता मुझे कर्तव्य करना था,
आज भी लक्ष्य पाने को ये दिल आशिक़ आवारा है।।
ज़िंदगी थी कठिन लगती घड़ी थी इम्तिहान की,
जूझता था मैं ख़तरों से ना मुझको चिंता प्राण की।
मुझे मंज़ूर था मरना मगर ना हार मानना,
वीर है वो जो मुश्किल में नहीं करता किनारा है।।
मैं ख़ुद कहता हूँ शब्दों में नहीं औक़ात कुछ मेरी,
हूँ सबसे निम्न स्तर का ना कहने में करूँ देरी।
ना होगा कुछ ज़माने से ये जबरन मुँह लड़ाने से,
जिसे कर्तव्य हो प्यारा वही दुनिया से न्यारा है।।
पता था चल रहा मुझको कठिन मेरा अरमान था,
हक़ीक़त अब समझ आई सोचना तो आसान था।
ना ख़्वाबों में कभी होते हमारे सपने ये पूरे,
परिश्रम की ज़रूरत है अगर निर्णय विचारा है।।
नहीं मुश्किल है सोचना मगर करते चलो भैया,
डरो मत चंद ख़तरों से यही तो लक्ष्य की नैया।
बनोगे क्रांति दुनिया में अगर चलते रहे हर पल,
सिकंदर सी उमंगे हो मगर स्वारथ गवारा है।।
रुकूँगा एक पल भी ना जब तक प्राण है तन में,
हौसलें कम नहीं होंगे सदा संकल्प ये मन में।
ज़रूरत है जो करने की करूँगा आन आर्यन की,
हाँ इससे बच निकलने का बचा ना कोई चारा है।।
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