विजय तू अब कर नारी
जो पग है सिंहासन तेरा,
विजय पथ पे चल नारी
नहीं वह चार दीवारी तेरी,
न आसन तू है नारी।
विजय तू अब कर नारी
रूप धरो नव दुर्गा का,
अब खड़क हाथ धर नारी
मंगल कर हाथों से जग,
पड़ रूप अमंगल भारी।
अपनी अस्मत और आंचल
को तू स्वयं बचाले नारी,
रूप धर सोहदों को बता
तू रक्तबीज संघारनी
पग-पग कांटे ही कांटे हैं।
तू लोक लाज है नारी
विजय तू अब कर नारी
जो पथ है सिंहासन तेरा
अब तोड़ बेड़िया नारी
कर बुलंद आवाज धरा पर
विजय पथ पे चल नारी।
कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)