एक दोस्ती ऐसी भी - लघुकथा - श्रवण कुमार पंडित

पंद्रह वर्ष की रानी अपने मोबाइल पर बहुत व्यस्त रहा करती थी। एक दिन घर में उसकी बड़ी दीदी और पड़ोसी आपस में लड़ने लगे इस बात की भनक तक उसे नहीं लगी। दिन-ब -दिन विवाद बढ़ने लगा। मामला पुलिस थाने तक आ पहुंची। रानी अपनी प्रतिरूपी दुनिया में ही वास्तविक समझकर उलझी रहती थी।

विक्रम नाम का एक पुलिस वाला ने इसी विवादित केस के जाँच के दौरान उस लड़की को गौर से देखा। रानी घर की समस्याओं पर बात करने के बजाय अपने दीदी की नयी सिम कार्ड एक्टिवेट करवाने के लिए बेचैन थी। विवाहित विक्रम के पास रानी आती है और अपनी मीठे-मीठे बातों से समस्या बताती है। विक्रम अपना मोबाइल नंबर डायल करके चेक करता है पर सिम एक्टिवेट नहीं हो पाता है।जैसे ही विक्रम वहां से निकलते है वैसे ही रानी उनके व्हाट्सएप पर हेलो लिखकर सन्देश भेजती है।
फिर क्या था बात धीरे -धीरे आगे बढ़ने लगी। मध्य रात्रि होते-होते एक- दूसरे ने प्यार स्वीकार तक कर लिया।

तीन-चार महीनों तक बातों का सिलसिला ऐसे ही जारी रहा। एक-दूसरे से खूब बातें हुई। दोनों अपनी कल्पनाओं से इच्छाओं को बुलंदियों तक तथा दुखों को गर्त तक ले जाने में सफल रहे। बात करने की लत इतनी बढ़ गई कि बाय शब्द का प्रयोग भी हेलो-हाई के जैसा ही होने लगा।मानों  बाय चीख-चीख कर पुकार रहे हो कि मेरा अस्तित्व ही खो चुका है। प्यार का ये चढ़ता बुखार तब उतरा जब विक्रम ने कहा कि मैं शादी सुदा हूँ और दो बच्चों का बाप भी हूँ। मैं तुमसे प्यार नहीं करता हूँ।
"प्यार से मिले विरह के बदले दोस्ती का रिश्ता कही बेहतर होता है।"
ये सुनकर मानों रानी के पैरों तले जमीन खिसक गई हो। विक्रम को गलत निगाहों से देखने लगी। विक्रम ने कहा कि "जबाबदेही जब बढ़ जाती है तो लोग अक्सर ऐसे ही पीछे हटने लगते है।" दुनिया में समझाने वाले बहुत लोग मिल जायेंगे पर प्रयोगिक करके बताये ये कम ही संभव होता है।दोस्ती प्यार में बदल जाए बहुत सुने होंगे पर प्यार होके दोस्ती में बदले, शायद ये कम ही सुनें होंगे। 

श्रवण कुमार पंडित - टेढ़ागाछ, किशनगंज (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos