नारी और न्याय - कविता - सुनीता रानी राठौर

नारी सशक्तिकरण का सर्वत्र नारा है,
नारी और न्याय शब्द मात्र छलावा है।
नारी अस्मिता हर पल घिरा खतरे में,
नारी शोषण का दिखता बोलबाला है।

दहेज लोभी गृहलक्ष्मी को जलाते हैं,
तेजाब किशोरियों पर फेंके जाते हैं।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का स्लोगन,
हर तरफ होर्डिंग्स बनाकर सजाते हैं।

पग पग पर बैठे हवस के शैतान हैं,
भलेमानस के रूप में छुपे हैवान हैं।
आसाराम, रामरहीम बाबा के भेष में,
छुपे खाल में भेड़िये बने नारायण हैं।

बेटी सुरक्षा हेतु कानून बनाए जाते हैं,
कानून तोड़ दुष्कर्मी नेता बन जाते हैं।
ये कैसी विडंबना, कैसा आडंम्बरपन, 
दुष्कर्मी माला पहना कर पूजे जाते हैं।

मंदिरों में माँ दुर्गा, लक्ष्मी पूजन होती है,
पर बेटियों की आबरू तार-तार होती है।
निर्दोष सीता क्यों अग्नि परीक्षा देती है?
बेगुनाह जिंदगी आँसुओ में कट जाती है।

युगों से चली आ रही कैसी परिपाटी है?
आँसुओ की कीमत नहीं आंकी जाती है।
पुरुषों के गुनाह नजर अंदाज हो जाते हैं,
औरत पे चरित्रहीन लांछन लग जाती है।

समाज में पुरुषों की मनमानी चलती है,
बच्चियां हवशियों की शिकार बनती हैं।
असहाय पीड़ित करे गुहार किससे वो ?
कानून भी मुँह देख सजा-ए-मौत देती है।

सुनीता रानी राठौर - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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