शिक्षक आत्मिक दर्शन - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

क्या लिख दूं मैं चरणों की गाथा
जिन चरणों में है स्वर्ग बसा,
निरंकार मैं की ज्योति से ही 
साकार ब्रह्म ने रूप धरा,
राम वही है कृष्ण वही है 
गुरु नानक है अवतार वही,
ज्ञान वही नित ब्रह्मा का 
दिया जो उसने सार यहीं
अलंकारमय की ज्योति से जो
कीचड़ में खिलाया पुष्प यही
शिक्षक वो ही निर्माता है जो
माटी को बदल दे सोना में,
जब चंद्रगुप्त सा शिष्य मिला तो
तब विष्णुगुप्त सा वो गुरु मिला,
स्वयं का दर्शन स्वयं करा दे 
वैसा मनोज मन गुरु मिला,
क्या लिख दूं मैं चरणों की गाथा
नित ब्रह्म खड़ा वह गुरु मिला,
शिक्षक है वह एक परिभाषा 
नियति-निर्माण की जगह मिला।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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