जरा याद करो कुर्बानी - कविता - सतीश श्रीवास्तव

स्वतंत्र देश के बाशिंदों जरा याद करो कुर्बानी,
कुर्बानी देने वालों की अमर बनाओ कहानी।
वे भारत की आजादी को जा फाँसी पर झूल गये,
रुदन नहीं था परिवारों में उनके सीने फूल गये।
भगत सिंह की माँ फाँसी के पहले मिलने आईं थीं,
हँसी खुशी बातें की पर न आँखें छलकाईं थीं।
मेरे मरने पर तुम माँ आँसू न बहाना आँखों से,
मेरे जैसे हों घर घर में कह देना माँ लाखों से।
भगत सिंह की माँ जैसी हर माँ हो माता रानी,
स्वतंत्र देश के बाशिंदों जरा याद करो कुर्बानी।
मंगल पाण्डेय बिगुल फूंक कर हो गये थे कुर्बान,
लेकिन आजादी की चर्चा होने लगी जवान।
अंग्रेजों को मारा पर भारत का मान बढ़ाया है,
ऐसे ही वीरों के कारण हमने भारत पाया है।
उनकी कुर्बानी पर हम आओ नाज करें,
भारत पर मरने वालों की चर्चा आज करें।
भूलो मत फांसी के फंदे और न काला पानी,
स्वतंत्र देश के बाशिंदों जरा याद करो कुर्बानी।
नेता सुभाष ने फौज खड़ी की अंग्रेजों से टकराने,
और शक्ति के आगे दुश्मन मन ही मन में घबराने।
खून माँग कर आजादी का नारा किया बुलंद,
अंग्रेजों की चालाकी की राह हो गई बंद।
नेताजी ने गांधीजी से जाकर के आशीष लिया,
कितने ही वीरों ने तब फिर हँसते हँसते शीश दिया।
उन वीरों की कहाँ मिलेगी दुनिया भर में सानी,
स्वतंत्र देश के बाशिंदों जरा याद करो कुर्बानी।
खूब लड़ी मर्दानी देखो रानी लक्ष्मी बाई,
जिनकी कुर्बानी के कारण यह आजादी पाई।
गुलाम गौस की तोपों ने कुछ ऐसी धूम मचाई थी,
अंग्रेजों के तन में बम से डर की सिहरन आई थी।
झलकारी बाई ने तब फिर त्याग का मान बढ़ाया था,
हँसते हँसते युद्ध भूमि में  वीर गति को पाया था।
जबतक यह धरती है तबतक लक्ष्मीबाई रानी,
स्वतंत्र देश के बाशिंदों जरा याद करो कुर्बानी।

सतीश श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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