लाखम राठौड़ - जोधपुर (राजस्थान)
बेटी - कविता - लाखम राठौड़
शनिवार, अक्टूबर 29, 2022
किसी गाय के बाछे की तरह
टुकर-टुकर देखती
असहाय-सी
निरीह
उदास बेटी,
आँगन में गेरुए रंग बनी
रंगोली की
एक सुंदर
लेकिन मिटि-मिटि-सी
लकीर बेटी,
सुंदर उपवन में खिले
अनगिनत महकते
फूलों के पास ही
कैक्टस सदृश
काँटेदार बेटी,
हज़ारों रोशनियों से भरे
चकाचौंध भरे
किसी गली के
नुक्कड़
पर लटकते
फ्यूज बल्ब-सी
अंधियारी बेटी,
किसी हॉरर फिल्म
में अकस्मात्
उभरने वाली
डरावनी
नफ़रत भरी
अदाकारा-सी
बेटी,
ख़ैर! अब बदलो ये उपमान
बदलने ही होंगे;
क्योंकि
किसी मंदिर में
गूँजती आरती
उस मस्जिद की
अज़ान
चर्च की पूजा
और
इन सब में विराजमान
निरंजन ईश्वर
ही
है
बेटी॥
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