अबकी सावन - कविता - रवि शंकर साह

खुला नही बाबा  दरबार ... अबकी सावन में।
देवघर वासी है लाचार ... अबकी सावन में।
लगा नहीं जयजयकार ... अबकी सावन में।
भक्तों की लगी नहीं कतार ... अबकी सावन में।
जन जन में मचा है हाहाकार ... अबकी सावन में।
पंडा जी का है खस्ताहाल ... अबकी सावन में।
मुरझाया चेहरा है फूलवालों ... अबकी सावन में।
होटलो के भूखमरी के है हालात ... अबकी सावन में।
सर मुड़ने वाले सर पिट रहे हैं ... अबकी सावन में।
ढोल नगाड़ों से गुंजा नहीं देवघर ... अबकी सावन में।
शिवगंगा में डुबकी न लगा पाए ... अबकी सावन में।
नहीं है बोलबम का जयकारे ... अबकी सावन में।
सुना है देवघर का गली बाजार ... अबकी सावन में।
केसरिया से पटा नहीं बाबा दरबार ... अबकी सावन में।
गुम हो गया खिलौने की खनक ... अबकी सावन में।
बरसीं नहीं छड़ी भक्तों पर इस बार ... अबकी सावन में।
हाई-टेक हो गए बाबा का सिंगार ... अबकी सावन में।
ऑनलाइन पूजा हो रहा है ... अबकी सावन में।
छाई हुई है उदासी इस बार ... अबकी सावन में।
पड़े नहीं कही सावन के झूले ... अबकी सावन में।
हो गए पाई पाई के मोहताज ... अबकी सावन में।
बधि माला बंधा रहा गया ... अबकी सावन मे।
पेड़ा चूड़ा का नहीं नामो निशान ... अबकी सावन में।
चूड़ी कंगन का खनक नहीं है ... अबकी सावन में।
लोहा लक्कड़ और तस्वीर है गायब ... अबकी सावन में।
सावन नहीं रहा मनभावन ... अबकी सावन में।
छाए है उदासी के बादल ... अबकी सावन में।
बाबा नाम ही  सहारा है ... अबकी सावन में।
भोले बाबा करेंगे बेड़ा पार ... अबकी सावन में।

रवि शंकर साह - बलसारा, देवघर (झारखंड)

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