आदतों में परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण दौर - लेख - सतीश श्रीवास्तव

हमारी संस्कृति में जो जीवन जीने के तौर-तरीकों को अपनाने के उल्लेख मिलते हैं उसमें अच्छी तरह से हाथ धोना भी सिखाया है तो वहीं स्वच्छ रहने की बाध्यता भी रखी गई है किन्तु उन नियमों को हमने पूरी जिम्मेदारी से पालन नहीं किया यदि किया होता तो आज महामारी के दौरान यह सब बच्चों की तरह पढ़ाना नहीं पड़ता।
समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन आदि के माध्यम से समझाया जा रहा है कि हमें स्वच्छता रखना है भली-भांति हाथ धोना है ।
हमें याद है कि जब हम स्कूल से आकर दौड़ते हुए रसोई में पहुंच जाते थे हमारी दादी बहुत नाराज़ हो जाती थीं तब मां को पूरा रसोईघर धोना पड़ता था... यही तो वह सुरक्षा चक्र था जिसमें हम और हमारा परिवार सुरक्षित और स्वस्थ रहता था।

विशेषज्ञ तो समझाते समझाते थक गये हैं कि स्वच्छ हाथ ही हमारे स्वस्थ और सुरक्षित जीवन की कुंजी हैं, वे बताते हैं कि ज्यादातर मामलों में बच्चों के हाथ गन्दे होने से ही बीमारियों के रोगाणु उनके शरीर में प्रवेश करते हैं। जो बच्चे साफ-सफाई का ध्यान रखते हुए नियमित इस आदत का पालन करते हैं उनमें बीमारियों की सम्भावना भी कई गुना तक कम हो जाती है, साथ ही उनमें रोग प्रतिरोधक यानी रोगों से लड़ने की क्षमता भी काफी हद तक बढ़ जाती है। 
कई कुपोषित बच्चों में भी देखा गया है कि साफ-सफाई के अभाव तथा हाथ नहीं धोने से वे संक्रमण का शिकार हो जाते हैं और दिन-ब-दिन बीमार रहने लगते हैं। उनका शरीर कमजोर होने लगता है और धीरे-धीरे वह गम्भीर रोगी होकर एक दिन मौत की नींद सो जाते हैं।

हाथ धुलाई की वैश्विक मुहिम के तहत 15 अक्टूबर 2014 को मध्यप्रदेश सरकार ने भी गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में जगह बनाने के लिए अपने 51 जिलों के 13 हजार 196 स्कूलों में एक साथ एक समय पर 12 लाख 76 हजार 425 बच्चों के हाथ धुलवाए और इसकी प्रदेशभर में वीडियोग्राफी भी कराई गई। इससे पहले 14 अक्टूबर 2011 को अर्जेंटीना, पेरू और मेक्सिको इन तीनों देशों में 7 लाख 40 हजार 820 लोगों ने हाथ धुलाई की थी। हाथ धोने की बात बहुत छोटी है पर इसकी अपनी विशेषताएं भी हैं। 
अब जरूरी है कि हम बच्चों की आदत में इसे शामिल करा सकें। यह चुनौती है और हम सबके सामने है। हमें अब ऐसे तरीके ईजाद करने होंगे कि गाँव-गाँव के मजरे-टोलों तक के बच्चों में भोजन से पहले, शौच के बाद और जब भी बाहर से आयें तो साबुन से अच्छी तरह हाथ धोने की प्रवृत्ति बन सके। 
नियम कोई सा भी बने, कानून कुछ भी बन जाये लेकिन तोड़ने वाले बस कानून तोड़ने की फिराक में रहते हैं चाहे उनकी जिंदगी भी ख़तरे में क्यों न पड़ जाए।
यही हालत लाॅकडाउन में आदेश निर्देशों की धज्जियां उड़ाते सड़कों पर घूमते लोगों की है जिन्हें अभी तक यह समझ में नहीं आ सका कि सामाजिक दूरी बनाए रखना उन्हें और समूचे देश को सुरक्षा प्रदान करता है उन्हें तो लगता है कि अब तो पुलिस ने हमारे घूमने फिरने पर भी पाबंदी लगा दी।

कोरोनावायरस कितना घातक है हमारे देश और समूचे विश्व के लिए यह समझाने की आवश्यकता नहीं है। अब देखना लंबे समय तक चलने वाले सोसल डिस्टेंस, स्वच्छता और भली प्रकार हाथ धोने का यह  सुधारात्मक परिवर्तन संस्कृति को मजबूत बनाने में सहायक होगा।

सतीश श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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